यह जैश-ए-मोहम्मद की भारत के लोकतंत्र के मंदिर को नेस्तनाबूद करने की साजिद थी, लेकिन हमारे सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए इन आतंकियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
कैसे हुआ था हमला- तारीख 13
दिसंबर, सन
2001, संसद लोकतंत्र का मंदिर जहां जनता द्वारा चुने सांसद भारत की नीति-नियमों का निर्माण करते हैं। 13 दिसंबर 2001 की तारीख भी इतिहास में दर्ज हो जाने के लिए आई। भारतीय लोकतंत्र को थर्रा देने के लिए आई। पूरा देश भौचक था कि आखिर संसद पर हमला कैसे हो सकता है।
गोलियों की आवाज, हाथों में एके-47 लेकर संसद परिसर में दौड़ते आतंकी, बदहवास सुरक्षाकर्मी, इधर से उधर भागते लोग, कुछ ऐसा ही नजारा था संसद भवन का। जो हो रहा था वो उस पर यकीन करना मुश्किल हो रहा था। लेकिन ये भारतीय लोकतंत्र की बदकिस्मती थी कि हर तस्वीर सच थी।
समय 11 बजकर 30 मिनट सेना की वर्दी पहने आये थे आतंकवादी गेट नो 11 से होते हुआ और उप राष्ट्रपति के काफिले में खड़ी गाड़ी को टकर मारते हुए, कार चला रहे आतंकी ने कार को गेट नंबर 9 की तरफ मोड़ दी। इसी गेट का इस्तेमाल प्रधानमंत्री राज्यसभा में जाने के लिए करते हैं। कार चंद मीटर बढ़ी लेकिन आतंकी उस पर काबू नहीं रख पाए, कार सड़क किनारे लगे पत्थरों से टकरा कर थम गई। उतरते ही उन्होंने कार के बाहर तार बिछाना और उससे विस्फोटकों को जो़ड़ना शुरू कर दिया। लेकिन कर में विस्फोट नहीं हुआ।
ये सब होता देख संसद के वॉच एंड वार्ड स्टाफ जेपी यादव गेट नंबर 11 की तरफ भागा।एक ऐसे काम के लिए जिसके शुक्रगुजार हमारे सांसद आज भी हैं इस वक्त तक सरकार में ऊपर से लेकर नीचे तक किसी को अंदाजा नहीं था कि संसद की सुरक्षा में कितनी बड़ी सेंध लग चुकी है।
उधर, कार में धमाका
कर पाने में
नाकाम आतंकियों ने
ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू
कर दी। गेट
नंबर 11 पर तैनात सीआरपीएफ की
कॉन्सटेबल कमलेश कुमारी भी दौ़ड़ते हुए वहां
आ पहुंची। संसद
के दरवाजे बंद
करवाने का अलर्ट
देकर जेपी यादव
वहां आ गया।
दोनों ने आतंकियों को रोकने
की कोशिश की,
लेकिन आतंकियों ने
ताबड़तोड़ फायरिंग करते
हुए उन्हें वहीं
ढेर कर दिया।
संसद परिसर
में ताबड़तोड़ गोलियां की आवाज
ने सुरक्षाकर्मियों में हड़कंप मचा
दिया। उस वक्त
सौ से ज्यादा सांसद मेन
बिल्डिंग में ही
मौजूद थे। पहली
फायरिंग के बाद
कई सांसदों को
इस बात पर
हैरत थी कि
आखिर कोई कैसे
संसद भवन परिसर
के नजदीक पटाखे
फोड़ सकता है।
वो इस बात
से पूरी तरह
बेखबर थे कि
संसद पर आतंकी
हमला हुआ है।
लेकिन तब
तक संसद की
सुरक्षा में लगे
लोग पूरी तरह
हरकत में आ
चुके थे। वो सांसदों और मीडिया के लोगों
को लगातार अपनी
जान बचाने के
लिए चिल्ला रहे
थे। उस वक्त
तक ये भी
तय नहीं था
कि आतंकी सदन
के भीतर तक
पहुंच गए हैं
या नहीं। इसलिए
तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण
आडवाणी और कैबिनेट के दिग्गज मंत्रियों को
संसद भवन में
ही एक खुफिया ठिकाने पर
ले जाया गया।
संसद में
फायरिंग और बम
धमाके की कान
फाड़ देने वाली
आवाज के बीच
शुरुआती मिनटों में
पूरे परिसर में
जबरदस्त अफरातफरी मची
रही। कई सांसदों को संसद
के वॉच एंड
वार्ड स्टाफ के
लोग सुरक्षित बाहर
निकालकर ले गए।
संसद के भीतर
मचे हड़कंप के
बीच पांचों आतंकवादी अंधाधुंध गोलियां दागते हुए
गेट नंबर 9 की तरफ भागे
जा रहे थे।
गेट नंबर 9 और उनके बीच
की दूरी कुछ
ही मीटर की
थी, लेकिन तब
तक गोलियों की
आवाज सुनकर गेट
नंबर 9 को बंद
कर दिया गया
था।
आतंकियों पर
जबरदस्त जवाबी फायरिंग भी जारी
थी। उन्होंने एक छोटी
सी दीवार फांदी
और गेट नंबर
9 तक पहुंच ही
गए। लेकिन वहां
पहुंचकर उन्होंने देखा
कि उसे बंद
किया जा चुका
है। इसके बाद
वो दौड़ते हुए,
बंदूकें लहराते हुए
आगे बढ़ने लगे।
तभी पहली मंजिल
पर मौजूद एक
पुलिस अफसर अपने
साथियों पर चिल्लाया कि एक-एक इंच पर
नजर रखो। कोई
आतंकी सदन के
भीतर ना पहुंचने पाए कोई
आतंकी यहां से
भाग ना पाए।
संसद के
भीतर की इस
हलचल के बीच
आतंकी गेट नंबर
9 से आगे बढ़ने
की कोशिश कर
रहे थे। 4 आतंकी गेट नंबर
5 की तरफ लपके
भी, लेकिन उन
4 में से 3 को गेट नंबर
9 के पास ही
मार गिराया गया।
हालांकि एक आतंकवादी गेट नंबर
5 तक पहुंचने में
कामयाब रहा। ये
आतंकी लगातार हैंड
ग्रेनेड भी फेंक
रहा था। इस
आतंकी को गेट
नंबर पांच पर
कॉन्टेबल संभीर सिंह
ने गोली मारी।
गोली लगते ही
चौथा आतंकी भी
वहीं गिर पड़ा।
चार आतंकियों को मार
गिराने की कार्रवाई के बीच
एक आतंकी गेट
नंबर 1 की तरफ
बढ़ गया। ये
आतंकी फायरिंग करते
हुए गेट नंबर
1 की तरफ बढ़ता
जा रहा था।
गेट नंबर 1 से ही तमाम
मंत्री, सांसद और
पत्रकार संसद भवन
के भीतर जाते
हैं। ये आतंकी
भी वहां तक
पहुंच गया। फायरिंग और धमाके
की आवाज सुनने
के तुरंत बाद
इस गेट को
भी बंद कर
दिया गया था।
इसलिए पांचवां आतंकी
गेट नंबर 1 के पास पहुंचकर रुक गया।
तभी उसकी पीठ
पर एक गोली
आकर धंस गई।
ये गोली इस
आत्मघाती हमलावर की
बेल्ट से टकराई। इसी बेल्ट
के सहारे उसने
विस्फोटक बांध रखे
थे। गोली लगने
के बाद पलक
झपकते ही विस्फोटकों में धमाका
हो गया। उस
आतंकी के शरीर
के निचले हिस्से की धज्जियां उड़ गईं।
खून और मांस
के टुकड़े संसद
भवन के पोर्च
की दीवारों पर
चिपक गए। जले
हुए बारूद और
इंसानी शरीर की
गंध हर तरफ
फैल गई।
पांचों आतंकियों के ढेर
होने के बावजूद इस वक्त
तक ना तो
सुरक्षाकर्मियों की पता
था और ना
ही मीडिया को
कि आखिर संसद
पर हमला कितने
आतंकियों ने किया
है। अफरातफरी के
बीच ये अफवाह
पूरे जोरों पर
थी कि एक
आतंकी संसद के
भीतर घुस गया
है। इसकी एक
वजह ये भी
थी कि मारे
गए पांचों आतंकियों ने जो
हैंड ग्रेनेड चारों
तरफ फेंके थे,
उनके में कुछ
आतंकियों को मारे
जाने के बाद
फटे।
संसद के
भीतर और बाहर
मचे घमासान के
बीच सुरक्षाकर्मियों को कुछ वक्त
लगा ये तय
करने में कि
क्या खतरा वाकई
टल गया है।
आधे घंटे के
भीतर सभी आतंकियों के मारे
जाने के बावजूद वो कोई
रिस्क नहीं लेना
चाहते थे। तब
तक सुरक्षाबल के
जवान संसद और
आसपास के इलाके
को बाहर से
भी घेर चुके
थे। गोलियों की
आवाज, हैंड ग्रेनेड के धमाके
की जगह अब
एंबुलेंस के सायरन
ने ले ली
थी।
संसद पर
हमले को नाकाम
करने में तीस
मिनट लगे। लेकिन
इन तीस मिनटों ने जो
निशानी हमारे देश
को दी वो
आज भी मौजूद
है। पांचों आतंकियों को ढेर
करने के बाद
कुछ वक्त ये
तय करने में
लगा कि सारे
आतंकी मारे गए
हैं। कोई सदन
के भीतर नहीं
पहुंचा। तब तक
एक-एक करके
बम निरोधी दस्ता,
एनएसजी के कमांडो वहां पहुंचने लगे थे।
उनकी नजर थी
उस कार पर
जिससे आतंकी आए
थे और हरे
रंग के उनके
बैग जिसमें गोला-बारूद भरा हुआ
था।
तलाशी के
दौरान आतंकियों के
बैग से खाने-पीने का सामान
भी मिला, यानी वो चाहते
थे कि संसद
पर हमले को
दौरान सासंदों को
बंधक भी बनाया
लिया जाए। वो
ज्यादा से ज्यादा वक्त तक
संसद में रुकने
के लिए तैयार
होकर आए थे।
अब जाकर सरकार
को एहसास हुआ
कि अगर आतंकी
भीतर घुस जाते
तो उसका अंजाम
कितना खतरनाक होता।
विस्फोटकों को किया नाकाम
बम निरोधक दस्ते ने
वहां पहुंचने के
बाद विस्फोटकों को
नाकाम करना शुरू
किया। उन्हें परिसर
से दो जिंदा
बम भी मिले
थे। जिस कार
से आतंकी आए
थे, उसमें 30 किलो आरडीएक्स था।
आप अंदाजा लगा
सकते हैं कि
अगर आतंकी इस
कार में धमाका
करने में कामयाब हो गए
होते तो क्या
होता।
सुरक्षाबलों को पूरी तरह
तसल्ली करने में
काफी देर लगी।
वो अब किसी
तरह का रिस्क
नहीं लेना चाहते
थे। हर किसी
की एक बार
फिर जांच की
गई। संसद परिसर
से निकलने वाली
हर कार की
भी तलाशी ली
जा रही थी।
जिन कारों पर
संसद का स्टीकर लगा था
उन्हें भी पूरी
छानबीन करके ही
बाहर जाने की
इजाजत दी जा
रही थी। एक-एक आदमी का
आईकार्ड चेक किया
जा रहा था।
जब सुरक्षा में
जुटे लोग पूरी
तरह संतुष्ठ हो
गए कि अब
खतरा नहीं है,
तब संसद सांसदों और मीडिया के लोगों
को एक-एक
करके बाहर निकालने का काम
शुरू हुआ।
संसद पर हमले की घिनौनी साजिश रचने वाले मुख्य आरोपी अफजल गुरु को दिल्ली पुलिस
ने गिरफ्तार किया। संसद पर हमले की साजिश रचने के आरोप में सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त
2005 को अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी।
कोर्ट ने आदेश दिया था कि 20 अक्टूबर 2006 को अफजल को फांसी के तख्ते पर लटका
दिया जाए। तीन अक्टूबर 2006 को अफजल की पत्नी तब्बसुम ने राष्ट्रपति के पास दया
याचिका दाखिल कर दी। राष्ट्रपति प्रणबमुखर्जी ने अफजल की दया याचिका खारिज कर दी
और सरकार ने उसे फांसी देकर हमले में शहीद हुए बहादुरों को सही मायने में श्रद्धांजलि दी।
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