शायद किसी ऐसे इंसान की, जो रोज़-ब-रोज़ होनेवाली जुर्म की वारदातों को देख-देख कर ख़ुद भी पत्थर हो चुका हो। जिसकी पूरी ज़िंदगी और पूरी शख़्सियत ऐसी ही वारदातों के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गई हो। और ज़ाहिर है कि ऐसे किसी इंसान से आप कम-से-कम कविता लिखने की उम्मीद तो नहीं कर सकते। वो भी दिल को छू लेनेवाली कविता। लेकिन मेरा दावा है कि मैं यहां आपकी ख़िदमत में जो कविता पेश कर रहा हूं, उसे पढ़ कर आप यकीनन अपनी सोच पर दोबारा सोचने को मजबूर हो जाएंगे।
क्राइम रिपोर्टर की कविता !!
क्राइम रिपोर्टर की कविता !!
तुमको मेरी परवाह नहीं है
क्या मेरा भगवन नहीं है
ज्यादा महंगे ख्वाब ना देना
इतनी मेरी तनख्वाह नहीं है
थोड़ी खुशियां पाल के रखना
ग़म की कोई थाह नहीं है
दर्द में अब भी दर्द है कायम
आह में पर वो आह नहीं है
रस्ता तो है पर राह नहीं है
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